दिल के जख्म
एक स्वरचित ग़ज़ल आप सभी के समक्ष
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दिल के कुछ ज़ख्म
दिल के कुछ ज़ख्म हैं नासूर बहुत
मैं उन ज़ख्मों को भरना चाहता हूँ
वक्त किरदार दे गया मुझको
मैं एक किरदार बनना चाहता हूँ
दिल के कुछ ज़ख्म हैं नासूर बहुत
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है सितम गर ये ज़माना सारा
मेरी दुनियां को यूं तबाह किया
था भरोसा मुझे तुझ पर कितना
मेरी चाहत को यूं तबाह किया
दर्द अब तो मुझे मिले हैं बहुत
मैं उन दर्दों को रखना चाहता हूँ
दिल के कुछ ज़ख्म हैं नासूर बहुत
मैं उन ज़ख्मों को भरना चाहता हूँ
वक्त किरदार दे गया मुझको
मैं एक किरदार बनना चाहता हूँ
दिल के कुछ ज़ख्म हैं नासूर बहुत
खुदको तुझ पर निसार कर दूंगा
अपनी उल्फत के आशियाने में कतरा कतरा मिटाऊंगा खुद को
तेरी चाहत के शामियाने में
एक तराना जो रैह गया मेरा
दिलको तेरे सुनाना चाहता हूँ
दिल के कुछ ज़ख्म हैं नासूर बहुत
मैं उन ज़ख्मों को भरना चाहता हूँ
वक्त किरदार दे गया मुझको
मैं एक किरदार बनना चाहता हूँ
दिल के कुछ ज़ख्म हैं नासूर बहुत
दिल के कुछ ज़ख्म हैं नासूर बहुत
स्वरचित व मौलिक ©®
पण्डित विजय कलम का दीवाना
Seema Priyadarshini sahay
05-Oct-2021 12:00 PM
Nice
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🤫
01-Oct-2021 12:44 AM
👌👌
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उदय बीर सिंह
30-Sep-2021 09:25 PM
बहुत-बहुत खूब
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